Saturday, July 21, 2012

कविता -16 : "रंग: छह कविताएं" - एकान्त श्रीवास्तव


एकान्त श्रीवास्तव की कविताओं में रंगों की एक अद्भुत दुनिया है । इन रंगों की परिभाषा वही नहीं है जो किसी चित्रकार के लिए हो सकती है या हुआ करती है । रंगों के बारे में बात करते हुए एकान्त एक सर्वथा अनकही भाषा और नए बिम्ब के साथ हमारा परिचय करवाते हैं । यह रंगों की एक अनदेखी दुनिया है हिन्दी के पाठकों के लिए । यहां रंगों का संबंध कलम और कूची से नहीं बल्कि सीधे जीवन से है ।


समुद्र पर एकान्त की कविताओं की ही तरह रंगों पर रची ये कविताएं अपने आस्वाद एवं प्रभाव में अनूठी हैं और संभवत: इस तरह की पहली कविताएं भी । यहां लाल "उस आकाश-गंगा का रंग है / जिसे धारण करती है माँ अपनी माँग में / जिसके डर से हजारों कोस / दूर खड़ा रहता है काल / और माँ रहती है सदा-सुहागिन"। नीला "रंग भाई की देह का/मृत्‍यु से पहले/और सर्प दंश के बाद/मैं इसे भूल नहीं सकता/कि यह रंग है समय की पीठ पर"। पीला "एक बहुत नाजुक रंग है/ जिससे रंगी है/लड़कियों की चुन्‍नी और नींद" । सफ़ेद "दुनिया की सबसे पहली स्त्री के /स्‍तनों से बहकर जो अमर हो गया/वही रंग है " । काला "कितनी चीख़ें, हत्‍याएँ और रक्‍त लिए/आ धमकता है यह रंग/सूरज के डूबते ही/और एक दिये के सामने/पराजित रहता है रात भर"। हरा "जब रक्‍त में शामिल हो जाता है/आदमी आखिरी सॉंस तक सहता है यातना/और उफ तक नहीं करता" ।


एकान्त के पहले काव्य-संग्रह "अन्न हैं मेरे शब्द" की ये कविताएं एकान्त की जनपदीय चेतना और जीवन-बोध का मुस्तकिल दस्तावेज हैं । इनमें लोक और स्थानीयता की महक है । जीवन में काम आने वाली छोटी से छोटी चीज़ एकान्त के लिए एक धरोहर है और मामूली से मामूली शब्द उनके यहां अपनी नई अर्थवत्ता में जुगनुओं की तरह चमकने लगते हैं । एकान्त अपने परिवेश को पर्यटक की तरह नहीं देखते । उनके इस देखने में एक बालसुलभ मासूमियत है । साथ ही उनका काव्य-विवेक भी उनकी कविताओं में अलक्षित नहीं रहता । एक सुलझा हुआ कवि ही कह सकता है कि "करोड़-करोड़ बूंदों का , एक बड़ा समाज है समुद्र / अजस्र नदियों और मेघों का प्रताप / इसमें किसी इन्द्र की कोई भूमिका नहीं"।


रंग: छह कविताएं
*एक (लाल)
यह दाड़िम के फूल का रंग है
दाड़िम के फल-सा पककर
फूट रहा है जिसका मन
यह उस स्त्री के प्रसन्‍न मन का रंग है
यह रंग पान से रचे दोस्‍त के होंठों की
मुस्‍कुराहट का है
यह रंग है खूब रोई बहन की ऑंखों का
यह रंग राजा टिड्डे का है
जिसकी पूँछ में बंधे हैं
बच्‍चों के धागे और संदेश
यह रंग रानी तितली का है
जिसे एक बच्‍ची लिये जा रही है घर
यह रंग उस आम का है
जो टेसुओं के नाम से जानी जाती है
और जिसके सुलगते ही वसन्‍त आज जाता है
दरअसल यह उस आकाश-गंगा का रंग है
जिसे धारण करती है माँ अपनी माँग में
जिसके डर से हजारों कोस
दूर खड़ा रहता है काल
और माँ रहती है सदा-सुहागिन।

*दो (नीला)
शताब्दियों से यह हमारे आसमान का रंग है
और हमारी नदियों का मन
थरथराता है इसी रंग में
इसी रंग में डूबे हैं अलसी के सहस्‍ञों फूल
यह रंग है उस स्‍याही का
जो फैली है बच्‍चों की
उंगलियों और कमीजों पर
यह रंग है मॉं की साड़ी की किनार का
दोस्‍त के अंतर्देशीय का
यही रंग है बरसों बाद
यह रंग है तुम्‍हारी पसंद
तुम्‍हारे मन और सपनों के बहुत निकट यह रंग है
और उस दिन भी ठीक यही रंग होगा आसमान का
इन्‍तजार की दुर्गम घाटियों को पार करने के बाद जिस दिन तुमसे मिलूंगा
इस रंग से जुड़ी हैं
प्रिय और अप्रिय यादें
अक्‍सर मेरी नींद में टपकता है नीला रक्‍त
और चौंककर उठ जाता हूं मैं
यही, हाँ, यही रंग भाई की देह का
मृत्‍यु से पहले
और सर्प दंश के बाद
मैं इसे भूल नहीं सकता
कि यह रंग है समय की पीठ पर।

*तीन (पीला)
इस रंग के बारे में
कोई भी कथन इस वक़्त
कितना दुस्‍साहसिक काम है
जब जी रहे हैं इस रंग को
गेंदे के इतने और इतने सारे फूल
जब हँस रहे हों
पृथ्‍वी पर अजस्र फूल
सरसों और सूरजमुखी के सूर्य भी जब चमक रहा हो
ठीक इसी रंग में
और यही रंग जब गिर रहा हो
सारी दुनिया की देह पर
यह रंग हल्‍दी की उस गाँठ का है
जो सिल पर लोढ़े के ठीक नीचे
पिसी जाने के इंतजार में है
यह एक बहुत नाजुक रंग है
जिससे रंगी है
लड़कियों की चुन्‍नी और नींद
सुनो! मुझे खुशी है कि मैं इस रंग से चीजों को जुदा करने की
साजिश में शामिल नहीं हूँ।

*चार (सफ़ेद)
दुनिया की सबसे पहली स्त्री के
स्‍तनों से बहकर जो अमर हो गया
वही रंग है यह
यों यह आपको काँस और
दूधमोंगरों के फूलों में भी मिल जाएगा
जब‍ स्त्रियों के पास
बचता नहीं कोई दूसरा रंग
वे इसी रंग के सहारे काट देती हैं
अपना सारा जीवन
यह रंग उन बगुलों का भी है
जो नगरों के आसमान से
कभी-कभी तफरीह के लिए आते हैं
और बीट करते हैं गॉंव-बस्तियों के पेड़ों पर
मैं इस रंग से पूछूंगा उस हंस के बारे में
जो मोती चुगता है
और जानता है मानसरोवर का पता
यह रंग जब दीवारों से रूठ जाता है
लगभग निश्चित हो जाती है
उनके गिरने की तारीख
जब टूट चुके तारों के शोक में
घर लौटते हैं हम
हमारे सामने एक साफ़ काग़ज़ में मुस्‍कुराता है यह रंग
हमें आमंत्रित करता हुआ।

*पांच (काला)
इस रंग से लिपटकर अभी सोये हैं
धरती के भीतर
कपास और सीताफल के बीज
दिया-बाती के बाद
इसी रंग को सौंप देते हैं हम
अपने दिन भर की थकान
और उधार ले लेते हैं ज़रा-सी नींद
यह रंग दोने में भरे उन जामुनों का है
जो बाज़ार में बिककर
जाने कितने घरों के लिए
नोन-तेल-लकड़ी में बदल जाएँगे
यह रंग तुम्‍हारे बालों के मुलायम समुद्र का है
जो संगीत और सुगन्‍ध से भरा है
और जहॉं मैं सिर से पॉंव तक डूब गया हूँ
यह भादों की उन घटाओं का रंग है
जिन्‍हें छुपाए रखती है माँ अपनी पलकों में
और डूबने से बचा रहता है घर
कितनी चीख़ें, हत्‍याएँ और रक्‍त लिए
धमकता है यह रंग
सूरज के डूबते ही
और एक दिये के सामने
पराजित रहता है रात भर।

*छह (हरा)
साइबेरिया की घास हो
या अफ्रीका के जंगल
या पहाड़ हों सतपुड़ा-विंध्‍य के
दुनिया भर की वनस्‍पति का एक नाम है यह रंग
इस रंग का होना
इस विश्‍वास का होना है
कि जब तक यह है
दुनिया हरी-भरी
यह रंग जंगली तोतों के उस झुण्‍ड का है
जो मीठे फलों पर छोड़ जाता है निशान
यही रंग है जो पोखर के जल में रहता है
और हमसे कभी नहीं छीनता हमारी कमीज का रंग
एक दिन कार्तिक में जब किसान पहुँचता है खेत
धान में लहराता है आखिरी बार यह रंग
और किसान की तरफ देखकर मुस्‍कुराता है
विदा की आखिरी मुस्‍कान
और दोनों हाथ जोड़ देता है- अच्‍छा!शायद अलगे आषाढ़ में
यह रंग जब रक्‍त में शामिल हो जाता है
आदमी आखिरी सॉंस तक सहता है यातना
और उफ तक नहीं करता
मैं इस रंग को
अपने रक्‍त से दूर रखना चाहता हूँ।
 

 


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