Saturday, October 18, 2014

कविता - 25 : नीलोत्पल की कविता 'सवाल यह है'



नीलोत्पल हमारे दौर के समझदार कवि हैं जिनके पास समय की नब्ज़ पर हाथ रखकर उसकी सेहत के बारे में जान लेने का हुनर और हौसला है | ‘सवाल यह है’ कविता में वे हथियार, बाज़ार और प्यार के त्रिकोण के साथ अपने पाठक को किसी एक को चुन लेने की विकट स्थिति के सामने ला खड़ा करते हैं | वे पूछते हैं कि इनमें से वह किस चीज़ से इस दुनिया को बचाना चाहेगा | जाहिर है कि प्यार से दुनिया को कोई खतरा नहीं है बल्कि प्यार ही वह चीज़ है जिस पर बाज़ार और हथियार के समय में बचे रहने का संकट है | कविता में केदारनाथ सिंह की चिंता है कि नन्हा गुलाब कैसे बचेगा | इससे आगे बद्रीनारायण की चिंता है कि प्रेमपत्र को कैसे बचाया जाएगा | नीलोत्पल सिर्फ बचने और बचाने की बात ही नहीं करते बल्कि सामने मौजूद खतरे की बात भी करते हैं | 
एक तरफ बाज़ार है जहाँ सबकुछ पण्य है, बिकाऊ है | बाज़ार में आदमी से ज्यादा पैसे की कद्र है | बाज़ार में आदमी की खरीदने की क्षमता ही उसकी एकमात्र काबिलियत है | उसका एकमात्र लक्ष्य है मुनाफा | इस बाज़ार में उस ह्रदय का क्या मोल जिसमें प्रेम भरा हुआ है | कहा जाता है, और सच ही कहा जाता है कि बाज़ार बड़ा क्रूर होता है | उसकी नज़र आदमी के दिल पर नहीं उसकी जेब पर टिकी होती है | जिसे हम बोलचाल की जुबान में औकात कहते हैं वह इस बाज़ार में पैसे से तय हुआ करती है | यहाँ इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि सामने खड़े आदमी के ह्रदय में कितना प्यार है | प्यार वह उदात्त मानसिक अवस्था है जिसमें व्यक्ति किसी दूसरे के लिए जीने लगता है | वह सामने वाले कि छोटी से छोटी खुशी की खातिर अपना सबकुछ दाव पर लगा देता है | वह देना जानता है, पाने के बारे में नहीं सोचता | प्यार से ही यह दुनिया सुन्दर है | जरूरी नहीं कि जब हम प्यार की बात करें तो उसके केंद्र में आशिक और माशूका ही हों | प्यार की व्याप्ति इससे बहुत आगे तक है | अपनी अंतिम ऊंचाई में यह प्यार एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के लिए आपस का भाव है | नीलोत्पल अपनी इस कविता में प्यार की इसी उंचाई को लक्ष्य करते हैं | उनकी चिंता इस प्यार को बचाने की है | लेकिन वे सामने मौजूद खतरों को भी देख रहे हैं | 
बाज़ार को जीत कर आदमी क्या हासिल कर सकता है | कवि उसकी परिणति जानता है | बाज़ार को जीतने वाला सबकुछ खरीद सकता है | वहाँ सबकुछ उसकी मर्ज़ी से तय होता है | वह जो भी करता है उसे सही कहा जाता है | लेकिन इस बाज़ार में उसकी एक हार उसके लिए मौत की तरह आती है | कवि कहता है वह अपनी हार के बारे में सोचते ही मारा जाएगा | वास्तव में इतना ही निर्मम, इतना ही क्रूर है बाज़ार | बाज़ार में जीतने के लिए आदमी सही गलत का फर्क भूल जाता है | वह न्याय अन्याय का भेद भूल जाता है | यहाँ टिके रहने के लिए उसे शक्ति की, बल की जरूरत पड़ती है | और जरूरत पाती है हथियारों की | बाजार का विजेता इतना डरा हुआ होता है कि आत्मरक्षार्थ हथियारों का भी आश्रय लेता है | वह प्रयोजन के अनुसार युद्ध के उन्माद को भी आमंत्रित करने में नहीं हिचकता | वह हथियारों का ढेर लगा कर भी असुरक्षित महसूस करता है | नीलोत्पल कहते हैं हथियार के पक्ष में खड़े होने के बाद उसके पास कटे उजाड़ जंगल बचते हैं जिसमें पेड़ के तले एक चिड़िया दबी पड़ी होती है | कवि इस चिड़िया की आँख में बचे सपने की तरफ संकेत करता है | किन्तु यह सपना ऐसा है जिसे अपने साथ घर नहीं ले जाया जा सकता | वह हाथ से छूते ही टूट जाता है |  हथियार और सपने का आपसी रिश्ता नीलोत्पल को पता है | उन्हें पता है जहाँ हथियार है वहाँ सपनों के परिंदे ज़िंदा नहीं रहा करते | 
सपने जहाँ बचे रहते हैं वह दुनिया प्यार की दुनिया है | कवि कहता है इस दुनिया में दीवारों में चुने जाकर भी तुम लोगों की उम्मीदों में बचे रहोगे | यहाँ दुःख जरूर हैं | तकलीफें हैं यहाँ | उदासियाँ हैं इस दुनिया में | लेकिन यही वह दुनिया है जहाँ जिस्म पर जख्मों के फूल खिलते हैं और होठों पर एक कभी न मुरझाने वाली मुसकान तैरती है | यह दुनिया जिस आदमी का चुनाव है वह दुनिया के हर दुःख में बिखर कर भी अपने लोगों में उम्मीद की तरह जीता रहता है | नीलोत्पल की यह कविता शाश्वत प्रेम की कविता है | यहाँ हार नहीं | यह आग का वह दरिया है जिसके बारे में ग़ालिब कहते हैं ‘जो डूबा सो पार’ | 
नीलोत्पल की यह कविता वास्तव में बाज़ार-हथियार-प्रेम के त्रिकोण में अपना अवस्थान तय करने की कठिन चुनौती के साथ अपने पाठक को उस अभ्यास से बाहर आने को विवश भी करती है जहाँ उसे दो में से किसी एक को चुनना होता था | भावोच्छ्वास को ही प्रेम कविता जानने समझने की अभ्यस्त आँखों के लिए यह कविता एक जरूरी पाठ है | 
 
कविता : 
सवाल यह है
तुम किस चीज़ से
बचाना चाहोगे दुनिया को
हथियार से,
बाज़ार से,
या प्यार से

हथियार अगर तुम्हारी ज़रूरत हैं
तो तुम दुनिया नहीं
ख़ुद को बचाना चाहते हो

अगर तुम बच गए
तो समझो तुम एक जंगल के बीच हो
जहाँ कटे पेड़ों के नीचे
दबे परिंदों की आँखों में
एक ख़ूबसूरत सपना है
तुम चाहते हो
उसे घर ले आया जाए
लेकिन जैसे ही छूते हो तुम
वह टूट जाता है

तुम अगर बाज़ार को चुनते हो
तो निश्चित ही जहाँ तुम दाँव फेंकोगे
तुम्हें अपने ख़रीदे प्रतिरूप दिखाई देंगे

यह दुनिया कमोडिटी की तरह होगी
जहाँ तुम तय करोगे भाव
और उसके उतार-चढ़ाव

तुम्हारी जीत-ही-जीत होगी
लेकिन जैसे ही तुम सोचोगे
अपनी हार के बारे में
मारे जाओगे

तुम अगर प्रेम के साथ हो
तो कहना मुश्क़िल है
तुम उदास नहीं होओगे

बल्कि हर अवसर पर घेरा जाएगा तुम्हें
कई दीवारों के भीतर चुने जाते हुए
जब तुम मुस्कराते मिलोगे
बरसों बाद भी
लोग निराश नहीं होंगे
जैसे ही तुम बिखर जाओगे
दुनिया के हर दुख में

7 comments:

  1. एक सार्थक व सामायिक कविता पर गहरा विश्लेषण!
    यह सवाल हम सभी के ऊपर मंडरा रहा है

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  2. सारगर्भित आलेख परत दर परत कविता को खोल रहा है .कविता भी याद रखने लायक है

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  3. hello sir aapne bahut hi sundar lekh share kiya he. aur aapka blog bhi bahut achha he. ese hi sundar lekh post karte rahiye.

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  4. कविता वैसे तो सरल सी ही है, अगर आपके व्याख्या को ना पढ़ा होता, आपके विश्लेषण ने इस कविता को उस उचाई पर मुझसे मिलवाया जहाँ यह खुद है।

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  5. Excellent your poem.
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