
"इस
स्त्री से डरो" कात्यायनी की एक बेहतरीन कविता है । यह कविता यथार्थ के न सिर्फ़
बहुत निकट की कविता है बल्कि स्त्री के मनोजगत की तहों में प्रवेश के लिए दरवाज़े भी
खोलती है । ज़रा सोचिए एक मनुष्य की उस मन:स्थिति के बारे में जब वह दुखी हो और हँस
रहा हो , कैद में रहते हुए आज़ादी के गीत गाता हो , बंधन में हो और मुक्ति के सपने देखता
हो , यातना सहते हुए भी प्रेम के गीत गा रहा हो । कात्यायनी इस श्लेष की ओर अपने पाठक
को ले जाना चाहती है । वे कविता में इसे संभव भी बनाती हैं । कविता में स्त्री सब कुछ
जानती है पर सब कुछ कहती नहीं । वह जो कहती है उसे समझने के लिए संवेदना की धार चाहिए
। यह उलटबासी गहरे निहितार्थ लिए हुए है । यह निराला की "जो मार खा रोई नहीं"
वाली स्त्री के बहुत करीब है । हिन्दी कविता में कात्यायनी इसीलिए एक ज़रूरी नाम है
। आज हालत यह है कि जो बहुत कम जानता है वही सबसे ज्यादा बोलता है ।
कवि की आँख से देखिए तो हँसी के भीतर थरथराती
काँपती हुई दर्द की लौ दिखती है । प्रेम के अन्त:पुर में दुखों का हहराता सागर दिखाई देता है । मुक्ति के गीत में जंजीरों की खनक साफ़
सुनाई देती है । एक अनिर्वचनीय वेदना कविता की पंक्तियों में तैरती रहती है । इसे ग़ालिब
के शब्दों में बयान करें तो , "मुश्किलें इतनी पड़ीं हम पर कि आसाँ हो गईं"
की उलटबासी है । यहां सिसकियाँ , हिचकियाँ , और उबासियाँ नहीं हैं , बल्कि एक बड़ी जगह
घेरती राग यमन में बजती कोई उदास धुन है ।
इस स्त्री से डरो..
(कात्यायनी)
यह स्त्री
सब कुछ जानती है
पिंजरे के बारे में
जाल के बारे में
यंत्रणागृहों के बारे में।
उससे पूछो
पिंजरे के बारे में पूछो
वह बताती है
नीले अनन्त विस्तार में
उड़ने के
रोमांच के बारे में।
जाल के बारे में पूछने पर
गहरे समुद्र में
खो जाने के
सपने के बारे में
बातें करने लगती है।
यंत्रणागृहों की बात छिड़ते ही
गाने लगती है
प्यार के बारे में एक गीत।
रहस्यमय हैं इस स्त्री की उलटबासियाँ
इन्हें समझो,
इस स्त्री से डरो।
सब कुछ जानती है
पिंजरे के बारे में
जाल के बारे में
यंत्रणागृहों के बारे में।
उससे पूछो
पिंजरे के बारे में पूछो
वह बताती है
नीले अनन्त विस्तार में
उड़ने के
रोमांच के बारे में।
जाल के बारे में पूछने पर
गहरे समुद्र में
खो जाने के
सपने के बारे में
बातें करने लगती है।
यंत्रणागृहों की बात छिड़ते ही
गाने लगती है
प्यार के बारे में एक गीत।
रहस्यमय हैं इस स्त्री की उलटबासियाँ
इन्हें समझो,
इस स्त्री से डरो।
बहुत अच्छी कविता ...
ReplyDeleteमेरी पसंदीदा कविताओं में से है, धन्यवाद् इसे रेखांकित करने के लिए
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