Wednesday, July 6, 2011

कविता - 5 : विमलेश त्रिपाठी की कविता - हम बचे रहेंगे





हम बचे रहेंगे ( विमलेश त्रिपाठी की कविता )

विमलेश त्रिपाठी कवि रूप में मुझे इसलिए भी प्रिय हैं कि उनकी कविताओं में समकालीन चालाकी या चतुराई नज़र नहीं आती । वे कविता में अधिकाधिक ईमानदारी बरतने वाले एक ऐसे कवि के रूप में आते हैं जिसके यहां शब्द ही पहली और आखिरी पूंजी है । ये शब्द भी जीवन और उसकी संवेदना में भींगे हुए होते हैं । कविता में छोटे-छोटे सुख-दु:ख , जय-पराजय और खोने-पाने की बारीक पहचान उसे एक नई चमक देती है ।


सब कुछ के रीत जाने के बाद भी
मां की आंखों में इंतज़ार का दर्शन बचा रहेगा
अटका रहेगा पिता के मन में
अपना एक घर बना लेने का विश्वास
ढह रही पुरखों की हवेली के धरन की तरह
तुम्हारे हमारे नाम के
इतिहास में गायब हो जाने के बाद भी
पृथ्वी के गोल होने का मिथक
उसकी सहनशक्ति की तरह बचा रहेगा
और हम बचे रहेंगे एक दूसरे के आसमान में
आसमानी सतरंगों की तरह ।


सब कुछ का रीत जाना व्यावहारिक अर्थों में जीवन का चुक जाना भी होता है लेकिन कविता में सब कुछ के रीत जाने के बाद भी इन्तज़ार बाकी है । यह इन्तज़ार भी ऐसा कि जैसा मां की आंखों का इन्तज़ार होता है । और हद तो यह भी है कि यह इन्तज़ार चुपके से ही सही इन्तज़ार के दर्शन में बदल जाता है । कविता में कवि की आस दर असल वह अदम्य जिजीविषा है जो पिता के मन में अपना एक घर बना लेने के विश्वास की तरह ज़िन्दा है । अपने बचे रहने का यक़ीन इतना सच्चा है कि वह मां के इन्तज़ार और पिता के विश्वास जैसा दिखने लगता है । यह यक़ीन ढह रहे पुरखों की हवेली के धरन की तरह है जो पूरा का पूरा कभी भी नहीं ढहता ।


विमलेश त्रिपाठी जब कहते हैं कि हम बचे रहेंगे तो यह मनुष्यता को बचा ले जाने की व्यापक जद्दोजहद है न कि व्यक्ति को बचाने की संकुचित महत्वाकांक्षा । यह एक इन्क्लूसिव सोच है जिसमें एक दूसरे के लिए हमेशा ही जगह बची रहती है । दूसरे ढंग से देखें तो यह एक निर्दोष प्रेम कविता भी है जिसमें अपने नामों के इतिहास में गायब हो जाने के बाद भी बचे रहने की हर संभावना मौज़ूद होती है । कवि इस संभावना को एक रंग देता है । वह इस संभावना को पृथ्वी के गोल होने के मिथक से जोड़ देता है और ऐसा करते हुए अपने लिए पृथ्वी की सी सहनशीलता को अर्जित कर लेता है ।


हम बचे रहेंगे कविता में बचे होने का मतलब एक दूसरे के आसमानों में बचे रहना है । आसमान की दूधिया सफ़ेदी में भी प्रकाश के सातों रंग बचे रहते हैं । प्रेम वह सात रंगों वाला इन्द्रधनुष है जो सब कुछ के रीत जाने के बाद भी बचा रहता है । कविता की आखिरी पंक्ति में आसमानी शब्द का इस्तेमाल ग़ैर ज़रूरी सा लगता है क्योंकि इसके पहले वाली पंक्ति में ही कवि आसमान शब्द का प्रयोग कर चुका है । इसे धृष्टता न समझा जाए तो विमलेश जी के लिए यह विनम्र प्रस्ताव रहा कि कविता की अन्तिम पंक्ति को इस तरह भी लिखा जा सकता है कि हम बचे रहेंगे एक दूसरे के आसमान में सतरंगों की तरह । या सतरंगी सपनों की तरह ।

4 comments:

  1. bimleshji ki abhivyaktiya jeevan ke hee chune hue sahaj rango se nikli hain. aisa lagta hai apni hee kisi peeda ko kisi aur ne shabd de diye hai. kavita bahut sundar hai bimleshji badhai. aur neelkamalji aapka lekhan to adbhut hai. ..

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  2. विमलेश के काव्‍य-स्‍वर में गज़ब आत्‍मविश्‍वास है। आपका विश्‍लेषण संक्षिप्‍त किंतु सटीक है। बधाई...

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  3. रीतता कुछ भी नहीं ,
    शुन्य भी तो है नहीं ,
    ( क्योंकि वह तो पूर्ण है )
    आसमान की दूधिया सफेदी ही महत्वपूर्ण है
    (सारे कार्य उसी में होते हैं )
    सात रंग तो कभी खुश करने प्रकृति, विद्यालय में एक प्रिज्म या कवि विमलेश त्रिपाठी जैसे दिखा पाते हैं

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  4. आभार....बहुत-बहुत शुक्रिया

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