Saturday, November 6, 2021

कविता-28: देवेन्द्र आर्य की लम्बी कविता - "पैदल इंडिया"



                               पैदल इंडिया 
देवेन्द्र आर्य की लम्बी कविता, "पैदल इंडिया" कोविड महामारी के बाद महानगरों से गाँवों की तरफ प्रवासी मजदूरों के भारी पलायन का महाकाव्यात्मक आख्यान रचती एक लम्बी कविता है जो अपने समय का एक जीवंत इतिहास भी है । यह कविता इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह नागरिक अधिकारों की संवैधानिक मर्यादा और उसके वास्तविक व्यवहारिक रूपायन के बीच के आडम्बर को बेनक़ाब करती है और एक जलता हुआ सवाल पाठक के सामने विवेचना के लिए छोड़ देती है - यह देश किसका है ? बुद्ध, गाँधी और शंकराचार्य के संदर्भ लेती यह कविता देश में नागरिक दुःखों को नये सिरे से जाँचती है । विकास के खोखले दावों को यह कविता बिना किसी राजनीतिक चतुराई के विवेकशील पाठक के सामने तथ्यों की तरह रखकर उसे अपना निष्कर्ष स्वयं तय करने के लिए छोड़ देती है । जब-जब हम कविता में समय की धड़कन की तलाश करेंगे "पैदल इंडिया" जैसी कविताओं के पास हमें आना ही होगा ।

प्रस्तुत है कविता: 

                   (पैदल इंडिया, पृष्ठ: 1/7)
                  (पैदल इंडिया, पृष्ठ: 2/7)
                 (पैदल इंडिया, पृष्ठ: 3/7)
                  (पैदल इंडिया, पृष्ठ: 4/7)
               (पैदल इंडिया, पृष्ठ: 5/7)
                  (पैदल इंडिया, पृष्ठ: 6/7)
                 (पैदल इंडिया, पृष्ठ: 7/7)       

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